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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

महान संत स्वामी श्री नारायणदासजी

               महान संत स्वामी श्री नारायणदासजी 

गाँव माँडवला प्रगट भये ,स्वामी बुधाअवतार !
सपत्नी की कोख से,जन्मे जन्मे आत्मज चार !!

संत की महिमा अगाध एवम अपरम्पार होती हैं !संत जन के जन्म से जाति सम्मानित एवम गोरवानित होती हैं,संत का जन्म लोक हितार्थ होता हैं ,वह समाज का प्रिय ही नही अपितु समस्त देश का हो जाता हैं !अत :यही कारण हैं की संत एक सार्वजनिक धरोहर होती हैं !
महात्मा बुधारामजी गाँव माण्डवला जिला जालोर राजस्थान राज्य के अंतर्गत अवतरित हुए !गृहस्थी जीवन में ही आपने वेदांत वाक्यों को मधुर भाषण के साथ देश-विदेश में भ्रमण कर ज्ञान रूपी भाण की किरणों से जिज्ञासु एवम मुमुक्षी जानो के हृदय के अंधकार का हनन किया !विचित्र राग-रागनियो से वाणी सुनाकर लोक कल्याण का मार्ग पथ प्रदर्शन किया !ऐसे महापुरुष के घर में चार पुत्रो ने जन्म लिया !
वाध यंत्र में पूर्ण पटू ,ज्येष्ठ सुत गंगाराम !
पूनम पूर्ण ,विज्ञ वर ,चतुर्थ मिठुराम !!
बड़े पुत्र श्री गंगाराम ,पुनमाराम ,पूर्णराम एवम सबसे अनुज मिठुराम चारो विज्ञवरो ने पिता श्री के भक्ति मार्ग का अनुसरण कर दिव्य लोक के पथ को प्राप्त किया !इन्ही कुल में पूर्ण विज्ञवर वेदांत के ज्ञाता श्री नारायण का जन्म हुआ,इनके पिता का नाम श्री गंगारामजी व मातु श्री का नाम वैराग्यवती था !इनका जन्म संवत 1985 कार्तिक सुद 14 के दिन ब्रह्ममुहर्त में हुआ था !
जब स्वामीजी की अवस्था पांच वर्ष की हुई देवयोग से आपकी माताजी स्वर्ग सिधार गये,अत :इनको पिताश्री का ही सनिद्दय मिला !बाल्यकाल में पिता श्री ने इनका लालन पालन किया व देश-विदेश में भ्रमण कर सुपुत्र को अनेक महात्माओ से परिचित करवाया !आठ वर्ष की अवस्था में वेदान्त के तत्वों को सीखकर रामायण की चोपाइयो को कंठस्थ कर लिया !तब श्री गंगारामजी पुत्र नारायण को साथ लेकर ग्राम मोकलसर जिला बाड़मेर में रहने लगे ,इकलोता पुत्र होने की वजह से महात्माजी ने दूसरा विवाह नही किया ,अत :इनका जीवन सुख से व्यतीत हुआ !
14 वर्ष   अवस्था में में कोलायत पर्वत जंहा पर पांड्वो ने तपस्या की थी ,उसी पर्वत पर एक गुफा आई हुई हैं ,जिसमे सन्यासी बह्मनिष्ठ महात्मा श्री भोलागिरीजी ने 12 वर्ष अखंड तपस्या की !आपने महात्माजी की चरणों को धोकर गुरु दीक्षा का मन्त्र लिया एवम छ:महिने अखंड सेवा कर मन क विक्षिप्ता को दूर किया !इकलोता पुत्र होने से पिता श्री को संशय हो  की ब्रह्मचारी न हो जाये ,अत: विक्रम संवत 2004 को स्वामीजी का विवाह हिंगोला पीर सम्प्रदाय गाँव चितलवाना जिला जालोर में तंवर वंशज पीर श्री मोडारामजी की सुपुत्री नेनु के साथ पाणीग्रहण हुआ ! गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने के उपरांत भी आपने वेदांत का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया एवम अनेको मुमुक्षी जनों को सही मार्ग बता कर जग बंधन से मुक्त कर दिया !तीस वर्ष की अवस्था में आपके पिताश्री का स्वर्गवास हो गया !
हर नेत्र शशि व्योम भुज,माह वद छठ शनिवार !
नश्वर जग को छोड़ कर,गंग गया शिव द्वार !!  
पिताश्री के दिव्यंगत होने के पश्चात आपने चार धाम की यात्राये की व अन्य विज्ञवर महात्माओ एवम महापुरुषों के दर्शन कर मन की अभिलाषा को पूर्ण किया!आप में साहित्यिकता की विचित्रता एवम पिंगल सर की अटूट तर्क शक्ति थी कि सहज में ही छन्द,कुंडलिया एवम पद रच डालते थे,आपके पदों की भाषा सरल,सहज एवम हैं जो आधुनिक राग-रागनियो से रचे गये पद मुमुक्षी जनों के ह्रदय को बिध डालते हैंऔर ज्ञान का प्रकाश करते हैं !
आपने गुजरात,मेवाड़,मालवा एवम सिंध राज्य में भ्रमण कर अनेको शिष्यों को भक्ति प्रेरित तत्व ज्ञानं से  करवाकर जाग्रत किया !आपने दम्पति जीवन में चार पुत्रो को जन्म दिया !
हंसाराम हरी नाम हैं,माधुराम मस्तान !
सुन्दर मोहन सिरोमणि ,चारो एक समान !!
भक्ति भाव में विचरण सत्संग की महिमा को विसतृत करते हुए स्वामीजी ने विक्रम संवत 2026 में आषाढ़ वदि 10 शशिवार को सांयकाल में नश्वर शरीर को छोड़ दिया !



                                              मेघवंश उत्पत्त भजन 
                                                      राग :-मंगल ताल ३ 
                     सुणजो साख मेघवंश उत्पत्त ,आदु  वचन सुणावु ,
                    सुणी में बात साख चित श्रवण ,झूठ जरा नि गावु !!टेर !!
                    प्रथम आद अलकजी री माया धन्धुकार रचाया !
                    रूप अखंड अविनाशी ,आदु रिख उपजाया!!१ !!
          जुगाद जोगाराम तिरिया ,आदरिख पुत्र कहाया !
                    ब्रह्मा रिख विष्णु महेश रिख तीनो ,तिरिया रिख रचाया !!२ !!
                    प्रथम महेश पारशर थाया ,वेद पुराणों में गाया !
                   धोमरिख ,गौतम ,मैणरिख ,बाबर ,पांचो सुत उपजाया !!३ !!
                   सिंगी ,काग ,कुबेर रिख ,पुलस्त ,ब्रह्मा रिख अप उपाया !
                   भेसारिख नारद मेघरिख माया ,विष्णु वंश धराया !!४ !!
                   ज्यां देखो ज्यां रिंखा री माया ,आद अनन्त थिरथाया !
                   कामधेनु कलश पाट अरु पूजा "नारायणदास "दरसाया !!५ !!

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