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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

महान संत श्री मिठुरामजी mahan sant shree mithuramji

                                     महान संत श्री मिठुरामजी 

   


                      गाँव माँडवला प्रकट ,स्वामी बुधावतार!


                     सपत्नी की कोख जन्मे आत्मज चार !!

                     वाध्य यंत्र में पूर्ण पटु,ज्येष्ठसूत गंगाराम !

                     पूनम पूर्ण ,विज्ञ वर ,चतुर्थ मिठुराम !!


महान संत श्री मिठुरामजी महाराज का जन्म विक्रम सवत 1971 की चेत्र मास कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथी दिनांक 3 मार्च 1915 को उतराफाल्गुनी नक्षत्र में राजस्थान राज्य के जालोर जिले के स्वर्णगिरी पर्वत की गोद में स्थित माण्डवला नामक ग्राम में  जोगसन रिखवंशज   में  श्री बुद्धाराम जी के घर हुआ था !आपके पिताजी का नाम श्री बुद्धाराम जी एवम माता का नाम चम्पनी  देवी था !पिता श्री के चार पुत्रो में सबसे छोटे होने से आपको पिताजी का पूरा सानिध्धय मिला !

आपने 12 वर्ष की उम्र में स्वामी उत्तमरामजी के परम शिष्य स्वामी 
रणछारामजी महाराज रणजीत आश्रम बालोतरा से गुरु दीक्षा प्राप्त की थी !रणछारामजी महाराज ने खूब साहित्य रचना की व अपनी वाणियो एवम प्रवचनों समाज सुधार के कार्य किये ! स्वामी रणछारामजी महाराज वेदों के महान ज्ञाता थे ,जिनका भी पूरा सानिध्धय मिला जिनकी निश्रा में आपने वेद  ,पुराण,उपनिषद ,रामायण ,गीता का गहन अध्धयन कर इश्वर प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त किया !
इस प्रकार इश्वर प्राप्ति की साधना पूर्ण होने के उपरान्त मिठुराम मुख 
से जो उपदेश वाणी प्रकट हुई अत्यंत महत्वपूर्ण और अर्थ पूर्ण हैं !स्वभावत : स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणी में जो कोमलता दिखलाई पड़ती हैं ,उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य समाज से दुष्टों का निर्दलन कर धर्म का संरक्षण करना ही था !इन्होने सदॆव सत्य का ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की और ध्यान न देते हुए धर्मसंरक्षण के साथ -साथ पाखंड खंडन का कार्य निरंतर चलाया ! दाम्भिक संत ,अनुभव शुन्य पोथी पंडित ,दुराचारी ,धर्मगुरु इत्यादि समाजकंटको की उन्होंने अत्यंत तीव्र आलोचना की हैं !आपके अनुयायी देश- विदेश में बसे हुए हैं !महाराज श्री द्वारा रचित विभिन्न राग,रागनियो में भजन ,दोहे इत्यादि का गायन-श्रवण उनके अनुयायी आज भी बड़े  चाव से करते हैं !
 18 वर्ष की आल्पायु में ही आपका विवाह जालोर जिले के टापी गाँव के पालीवाल गोत्रीय करनीरामजी की सुपत्रि रंगुदेवी के साथ हुआ था !सपत्नी ने चार पुत्र और दो पुत्रिया जिसमे सबसे बड़े वालूराम ,रामचंद्र ,नवाराम,व पियारम और पुत्रिया सुआदेवी  व सकुदेवी को जन्म दिया !
आपके पिता स्वामी बुद्धारामजी देश विदेश का भ्रमण करते थे !आपने अपने पिताजी के साथ सिंध ,करांची ,पाकिस्थान ;अफगानिस्तान , गुजरात ,मध्यप्रदेश ,मालवा के साथ सम्पूर्ण हिन्दुस्थान का भ्रमण किया था !आपने वेदांत वाक्यों को मधुर विचित्र राग- रागनियो से भजनों के माध्यम से लोक कल्याण का पथ प्रशस्त  किया ! आपने चार धाम की यात्रा की व कई महात्माओ व महापुरुषों के दर्शन कर मन की अभिलाषा को पूर्ण किया !आपमें साहित्यिक की विचित्रता एवम पिंगल सार की अटूट  शक्ति थी की पल में ही छंद कुंडलिया एवम पद की रचना कर देते थे !आपके पदों की भाषा सामान्य होती थी ,जो सहज ही आमजन की समज में आ जाती थी ! ग्रहस्थी जीवन का निर्वहन करते हुए आपने समाज को एक नई दिशा प्रदान की !
वे कहते थे की इस संसार में जाती प्रथा का इतना जहर गुल गया हैं इस संसार में जो भी जीव-जन्तु हैं, कईरूप, रंग, वर्ण रखते हैं. उनके समूह को ही जाति कहागया है. जल, थल, आकाश के जीव अपनी-अपनी जातियाँ रखते हैं. पशु-पक्षियों और जल में रहने वाले मच्छ, कच्छ, व्हेल मछली जैसी जातियाँ पाई जाती हैं. मनुष्य जाति में अनेक जातियाँ बन गई हैं. अलग-अलग और नाना जातियाँ बनने का मूल कारण यह है कि ये जितने रंग, रूप और शरीर वाले जीव हैं, ये स्थूल तत्त्वों से बने हैं. इनके मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, विचार, भाव सूक्ष्म तत्त्वों से बने हैं. इनकी आत्माएँ कारण तत्त्वों से बनी हैं और प्रत्येक जीव जन्तु में ये जो पाँच तत्त्व हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. इनका अनुपात एक जैसा नहीं होता. सबका अलग-अलग है. किसी में वायु तत्त्व और किसी में आकाश तत्त्व अधिक है. इन्हीं के अनुसार हमारे गुण, कर्म, स्वभाव अलग-अलग होते हैं. गुण तीन हैं. सतोगुण, रजो गुण और तमोगुण. किसी के अन्दर आत्मिक शक्ति, किसी में मानसिक शक्ति, किसी में शारीरिक शक्ति अधिक होती है. इसी तरह कर्म भी कई प्रकार के होते हैं अच्छे, बुरे, चोर, डाकू, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार भी किसी में अधिक, किसी में कम. किसी में प्रेम और सहानुभूति कम है किसी में अधिक. इस . जिस महापुरुष का शरीर, मन और आत्मा इन तत्त्वों से इस प्रकार बने हैं, जो समता या सन्तुलित रूप में हैं, उस महापुरुष को संत कहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर वासना उठती है और उसी वासना (कॉस्मिक रेज़) से सकारात्मक व नकारात्मक शक्तियाँ पैदा होती हैं जो स्थूल पदार्थों की रचना करती रहती हैं. वासना एक जैसी नहीं होतीइसलिए भिन्न-भिन्न प्रकृति के लोग उत्पन्न हो जाते हैं!
ऐसे सिद्ध पुरुष को अपनी अंतिम समय का पूर्वानुमान होने पर उन्होंने अपने सभी भक्त एवम प्रेमी जनों को बुलाकर सतसंग  की !अपने ज्येष्ठ पुत्र वालूराम को परिवार की जिम्मेदारी सोप कर विक्रम सवत 2027माघ वदि 14 सोमवार को प्रभात  के समय  पद्मासन लगाकर प्रभु भक्ति में लीन होकर इस नश्वर शरीर को छोड़ शिवलोक को प्यारे हो गए ! ऐसे महान संत को सत -सत नमन !!!
                                                                                                                                भगवानाराम मेघवाल



                                     भजन

 !!टेर !!  मिलिया आत्म राम हमने ,निर्मल होगी काया रे !

 गुरु हमारा केवा ,फुल गुलाब जेवा ,अन्दर में रमता देखिया रे !!१ !!


 चन्द्र सूरज प्रकाशा ,दोनों रेवे आकाशा ,कुदरत खेल बनाया रे !!२ !!


 इन्द्र करे चढवाई ,विरथा करे निरमाई ,बिजली रा चमकाया रे !!३ !!


मिठुराम जुग माई ,हरी का ध्यान लगाई , भव से पार लगाया रे !!४!!

                                             भजन 

               !!टेर !! सतगुरु मिलिया साचा ,मेरे हिरदे किया प्रकाशा!

ब्रह्नज्ञान सुनाया ,मेरी दुरमति दूर कराया ,कर्मन का किना नासा रे !!१ !!


गेबी शब्द घुरन्दा ,आट पोर आनन्दा ,नही काल का वासा रे !!२!!


सोवन शिखर सेलाणा ,सतगुरु से ओलखाणा,पाँच तीन नही पासा रे !!३!!


मिठुराम रंग भीना ,गुरु का शरणालीना , पल -पल गुरु का दासा रे !!४!!


                                   कुण्डलिया 




                    रामभजन बिना ,मनुष पशु समाना !




                 ज्यारे सिंगरु पुंछ ,काणा मोड़ा जाना !!



                 काणा मोड़ा जाना ,बड़ा पापी कहावे !



                 जमोरी पड़ेला मार ,भजन भोला पावे !!



                 भजन भोला पावे  ,मिठुराम मस्ताना !



                 राम भजन बिना ,मनुष पशु समाना!!





                                 कुण्डलिया  


             हिरणाकुश पापी बड़ा ,प्रहलाद राम ऊचार !




             नारायण नरसिह भये ,मिठुराम मन मार !!



             मिठुराम मन मार ,लुटेरा  लाटा लिना !



             अकर्म किना काम ,राम सुमिरन बिना !!



             राम सुमिरन बिना ,चलनो खोडे धार !



             हिरणाकुश पापी बड़ा ,प्रहलाद राम ऊचार !!

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