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बुधवार, 28 सितंबर 2022

मेवाड के महान संत श्री धनदासजी महाराज mewad ke mahan sant dhandasji maharaj


 संत श्री धनदासजी महाराज



महान सन्त उस व्यक्ति को कहते हैं जो सत्य आचरण करता है तथा आत्मज्ञानी है, जैसे संत शिरोमणि गुरु रविदास , सन्त कबीरदास, संत गोकुल दास , घासीदास। 'सन्त' शब्द 'सत्' शब्द के कर्ताकारक का बहुवचन है। इसका अर्थ है - साधु, संन्यासी, विरक्त या त्यागी पुरुष या महात्मा।

गुरु श्री मोहन महाराज
ऐसे ही एक विरले पुरुष का जन्म मेवाड की महान भुमि , अरावली पर्वतमाला मे कुंभलगढ से 45 किलोमीटर दुर सायरा - रणकपुर  रोड पर बोखाडा नामक गाँव मे विक्रम संवत 2012 फाल्गुण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मेघवाल संत मोडीदासजी के घर पर एक दिव्य बालक का जन्म श्री मति डाली बाई की कोख से जन्म लेता है । परिवार मे हर्ष का माहौल होता है , आस पडौस के लोगो द्वारा मोडीदासजी को बधाईयां देकर मुंह मिठा करवाया जाकर मंगल गीत गाये जाते है । धीरे धीरे बालक धनदासजी बडे होते है। तत्कलीन परिवेश मे पढ़ाई का महत्व पता नही होने ओर सुलभ शिक्षा नही मिलने से धनदासजी ने अक्षर ज्ञान कर ही लिखने की क्षमता हासिल कर‌ली थी । साथ ही वे अपने पिताजी के साथ गृह कार्य सहित किसानी के कार्यों मे सहयोग करने लग गये । धीरे धीरे धनदासजी यौवन अवस्था मे आये तो पिता श्री मोडीदासजी ने उनका विवाह नान्देशमा  निवासी मगनदासजी की सुपुत्री रतनी बाई के साथ करवा लिया। लेकिन धनदासजी का मन तो कही और ही लगा हुआ था , उनके मन मे तो प्रभु भक्ति की ओर लगा हुआ था । इसी दौरान धनदासजी को किसी यात्रीक से यह ज मिली की सिरोही जिले के वीरवाडा गाँव मे एक पहुंचे हुऐ साधु श्री मोहन महाराज धुणी रमाये हुए है , जिनके दिव्य तेज से लोगो का मन हर्षित हो जाता है , और उनके सारे दुख -  संताप  और मन की पीडा दुर हो जाती है । एक दिन धनदासजी परिवार ओर अपने परिवार को बिना बताये वह घर छोडकर पहुंच जाते है वीरवाडा मोहन महाराज के दर्शन के ओर वही के होकर रह जाते है।  वहां पर महाराज मोहन महाराज की सेवा सुश्रुषा मे मन लगाकर सेवा करते है । इधर घर से निकलने पर उनके परिवार के लोगो ने धनदासजी को आस पडौस के गाँव स इत सगे सम्बन्धी लोगों के वहां पर जाकर पता किया लेकिन कोई समाचार नही मिला अंत मे डेढ साल बाद घर परिवार को जानकारी मिली की धनदासजी तो वीरवाडा मे मोहन महाराज की सेवा मे लगे हुए है । परिवार के लोग उनको घर लाने हेतु वहां गये लेकिन लाख कोशिश के बाद भी वह घर नही आए , थक हार कर परिजन वापस आ गये ओर धनदासजी पुनः गुरु की सेवा मे लग गये । इसी दौरान एक दिन मोहन महाराज को अपनी दिव्य दृष्टि से यह जानकर की धनदासजी के पिताजी का परिनिर्वाण हो गया है , वह धनदासजी को कहते है की तुम्हे शुबह ही घर जाना होगा। यह सुनते ही धनदासजी स्तब्ध रह गये लेकिन गुरु की आज्ञा को टाल भी नही सकते थे। वह शुबह होते ही ही अपने घर को रवाना हुए तो गुरु मोहन महाराज ने उनको कागज का एक टुकडा देते हुए कहा की पैदल मत जाना आज तुम्हे हर जगह से साधन मिल जायेगा , गुरू की कृपा उस वक्त वाहन भी कम ही चलते थे । लेकिन धनदासजी को एक बस मिली वो उसमे बैठकर अपने गन्तव्य की ओर चले , बस कंडक्टर ने टिकट मांगा तो धनदासजी ने वह कागज का टुकडा आगे बढाया तो हजार का नोट बन गया । धनदासजी भी अवाक रह गये। इधर बोखाडा से दो व्यक्ति धनदासजी को लेने के लिए वीरवाडा पहुचे तो महाराज ने बताया कि उनको तो मैंने सुबह ही घर के लिए भेज दिया है वही धनदासजी जी महाराज जी अपने घर पहुंच गए थे वहां पर अपने सभी सगे संबंधी मोडीदासजी की अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे। धनदासजी ने अपने पिताजी को समाधी देकर सारे सामाजिक रीति रिवाज पुरे कर पुनः गुरु की सेवा के लिए निकल पडे। वीरवाडा जाकर गुरु की सेवा के दौरान महाराज ने भी उनकी बहुत ही कठिन परिक्षाए ली , जिनमे वे पुर्ण रूप से गुरु की परीक्षा मे सफल रहे । मोहन महाराज ने धनदासजी को योग्य शिष्य पाकर अपनी सारी ब्रह्मज्ञान की विधा का सार धनदासजी को सुनाकर अपना समय समाज सुधार और समाज सेवा मे लगाने की बात की । इस तरह बारह वर्ष सेवा कर धनदासजी ने अपना तत्व ज्ञान और कर्म करने के लिए गुरु से आज्ञा मांगी तो मोहन महाराज ने उन्हें अपनी भेंट स्वरूप अपनी चरण पादुका ओर अपना आसन , एक रूपया ओर पुजा के लिए शालिग्राम पत्थर देकर विदा किया । ओर साथ ही यह आदेश दिया की बारह धुणी तापने के बाद मै स्वयं बताऊंगा की तुम्हें कहा पर अपना स्थान बनाकर धुणी की स्थापना करनी है। मोहन महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए धनदासजी ने जब बारह धुणी पुरी की तो गुरु महाराज ने स्वप्न मे बात ,बोखाडा मे धुणी का आदेश दिया ओर उसी स्थान पर आज 73 गावो का धुणा स्थित है। हरि स्मरण करते हुए उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन भी निभाया , उनकी उनके पंच पुत्र हुए , प्रकाशदास , सुरेशदास , गोविंद दास , लक्ष्मणदास और भगवान दास हुए । धनदासजी महाराज ने समाज मे व्यापक कुरीतियों सहित समाज सुधार के अनेको कार्य किए जिनकी लोग आज भी प्रशंसा करत है। ऐसे महान संत का परिनिर्वाण 29.09.2010 को हुआ जिनका भव्य शोभा यात्रा निकाल कर अंतिम विदाई दी गई । वर्तमान में इस धुणी पर प्रकाशदास जी महाराज पूजा कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे है।






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